अगर आप राजस्थान से संबंधित किसी भी परीक्षा ( RAS, REET , 2nd Grade , LDC , Rajasthan Police , High Court ) की तैयारी करते हैं तो Rajasthan Art & Culture में उपलब्ध कराए जाने वाले नोट्स आपके लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है इस पोस्ट में हम आपको Rajasthan Art and Culture – विवाह संबंधी रीति-रिवाज नोट्स के शॉर्ट नोट्स नि शुल्क लेकर आए हैं ताकि यह टॉपिक आपको अच्छे से क्लियर हो सके

राजस्थान की कला एवं संस्कृति ( Rajasthan Culture) के ऐसे नोट्स आपको ढूंढने पर भी नहीं मिलेगी अगर आप हमारे द्वारा उपलब्ध करवाए जाने वाले नोट्स के माध्यम से तैयारी करते हैं तो निश्चित ही आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे

Rajasthan Art and Culture – विवाह संबंधी रीति-रिवाज नोट्स

तोरण मारना

  • विवाह के अवसर पर दूल्हे द्वारा दुल्हन के घर के मुख्य द्वार पर लटके तोरण पर छड़ी लगाना तोरण मारना कहलाता है। इस रस्म के बाद आधा विवाह हो जाना मान लिया जाता है। तोरण मारना एक प्रकार से वर की शूरवीरता की परीक्षा करना भी रहा है। पहले एक ही वधू को ब्याहने के लिए कई वर आ जाते थे और जो ऊँचे बंधे तोरण को पहले मारने में सफल होता उसी के साथ कन्या का विवाह कर दिया जाता था। विवाह के लिए सुथार ही थंभ, मंडप और तोरण बनाते हैं। तोरण सप्तभुजा, पंचभुजा अथवा गोलाकार होता है। इसके बीच में चिड़िया तथा मयूर की आकृति लगाई जाती है। तोरण और थंभ आने पर महिलाएँ शुभ गीत गाती हैं ‘अरे खातीड़ा रा बेटा, थे चतुर सुजान, तोरणियो घडल्या चनकणिए रूखां रो।‘

सुहागथाल

  • भोजन का थाल जिसमें कुछ सुहागिन स्त्रियाँ, नवविवाहित वधू के साथ भोजन करती है।

जेवड़ौ

  • तोरण पर सास द्वारा दूल्हे को आँचल से बाँधने की रस्म।

झाला-मिला की आरती

  • तोरण द्वार पर सास अथवा बुआ सास द्वारा की जाने वाली विशेष प्रकार की मांगलिक आरती।

पावणा

  • नए दामाद के ससुराल में आने पर स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले लोकगीत।

सीठणा

  • मेहमानों को भोजन करवाते समय गाए जाने वाले गाली गीत सीठणा कहलाते हैं।

कामण

  • कामण का अर्थ जादू-टोने से है, वर को जादू-टोने से बचाने हेतु गाए जाने वाले गीत।

बिनोटा

  • दूल्हा – दुल्हन की जूतियाँ।

कन्यावल

  • विवाह के दिन वधू के माता-पिता व भाई-बहनों द्वारा किया जाने वाला उपवास, कन्यावल कहलाता है।

वधू के तेल चढ़ाना

  • बरात आने के बाद वधू के अन्तिम बार पीठी की जाती है और तेल चढ़ाया जाता है। तेल चढ़ाने के बाद विवाह होना जरूरी है।

फेरे

  • फेरों को सप्तपदी भी कहते हैं। यह विवाह की सबसे महत्त्वपूर्ण रस्म होती है। इस रस्म के अनुसार वर अपनी वधू का हाथ अपने हाथ में लेकर (हथलेवा जोड़ना) अग्नि के चारों ओर घूमकर सात फेरे लेता है। पंडित या पुरोहित मांगलिक मंत्रों का उच्चारण करता है। सात फेरों के माध्यम से यह विश्वास किया जाता है कि वर-वधू सात जन्मों तक इस बंधन को निभाते रहेंगे। फेरों के बाद पंडित वर-वधू से वचन निभाने का आश्वासन लेता है।

कन्यादान

  • इस रस्म के अनुसार वधू के माता-पिता वधू का हाथ वर के हाथ में देते हैं। इस समय पंडित वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए वधू के माता-पिता से कन्यादान का संकल्प लेता है। वर, कन्या की जिम्मेदारी निभाने का वचन देता है।

बासी मुजरा (पेसकारा)

  • विवाह के दूसरे दिन जहाँ बरात ठहराई जाती है वहाँ से वर पुनः वधू के यहाँ नाश्ता करने आता है, इस अवसर पर मांगलिक गीत गाए जाते हैं।

जेवनवार

  • वधू के घर पर बारात को चार जेवनवार (भोज) करवाने का रिवाज है।

सीख (भेंट)

  • राजस्थान में विवाह के बाद वर-वधू एवं बरातियों को सीख देकर विदा किया जाता है।

ऊझणौ (ओझण)

  • वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिए जाने वाले राशि एवं उपहार।

मांमाटा

  • विवाह में कन्या की सास के लिए भेजी जाने वाली भेंट जिसमें नगद, मिठाई एवं सोने/चाँदी की एक कटोरी भेजी जाती है।

पहरावणी

  • बरात विदा करते समय प्रत्येक बराती तथा वर-वधू को यथा शक्ति धन दिया जाता है। इसे पहरावणी की रस्म, समठणी या रंगबरी कहते हैं। पहले सभी बरातियों को पगड़ी पहनाई जाती थी। इसलिए इसे ‘पहरावणी’ कहा जाता था। विदाई के समय वर-वधू पक्ष के लोग एक दूसरे को रंग/गुलाल लगाते हैं, इसलिए इसे ‘रंगबरी’ भी कहा जाता है। यह अंतिम वैवाहिक रस्म होती है, जो वधू पक्ष के घर पर संपन्न होती है। इसके बाद वधू अपने ससुराल चली जाती है।

मुकलावा या गौना

  • विवाहित अवयस्क कन्या को वयस्क होने पर उसे अपने ससुराल भेजना ‘मुकलावा‘ करना या ‘गौना‘ कहलाता है। वर्तमान में परिपक्व अवस्था में विवाह होने के कारण गौना विवाह के साथ ही कर दिया जाता है।

विदाई

  • इसमें वर और वधू के वस्त्रों के छोर परस्पर बाँधे जाते हैं और दोनों की अंगुलियों में चावल के दाने रखे जाते हैं। वधू के परिवार की स्त्रियाँ वधू को विदा करने के लिए विदाई गीत गाती हैं जिसे ‘कोयलड़ी‘ गीत कहते हैं।

पैसरो

  • विवाह के बाद दूल्हे के घर के आँगन में सात थालियों की कतार को दूल्हे द्वारा तलवार से ईधर-उधर सरकाना और दुल्हन द्वारा जेठानी के साथ मिलकर संग्रह करने की रस्म।

हथबौलणो

  • नव आगंतुक वधू का प्रथम परिचय।

जुआ-जुई

  • विवाह के दूसरे दिन खाने के पश्चात् दोपहर को एक बर्तन में जल और दूध भरकर वर-वधू के सामने रखकर उसमें पैसा/अँगूठी डाल दी जाती है। वर या वधू में से जिसके हाथ में अँगूठी आ जाती है वही विजयी माना जाता है।

बढ़ार

  • – यह विवाह के दूसरे दिन वर पक्ष द्वारा अपने रिश्तेदारों व मित्रगणों को दिया जाने वाला भोज है जिसे आजकल आशीर्वाद समारोह तथा अंग्रेजी में रिसेप्शन (Reception) कहते हैं।

बरोटी

  • विवाह के बाद वधू के स्वागत में किया जाने वाला भोज।

हीरावणी

  • विवाह के समय नववधू को दिया जाने वाला कलेवा।

ननिहारी

  • राजस्थान में पिता द्वारा बेटी को विवाह के बाद प्रथम बार विदा करवाकर लाने की परम्परा ‘ननिहारी’ कहलाती है।

रियाण

  • पश्चिमी राजस्थान में विवाह के दूसरे दिन अफीम द्वारा मेहमानों की मान-मनवार करना ‘रियाण‘कहलाता है।

खोल्याँ

  • शेखावाटी के ठिकानों के कामदार मुसलमान थे। इनके यहाँ विवाह के समय ससुराल में वधू को ‘खोल्याँ‘रखने का एक दस्तूर होता है। वधू को ससुराल के किसी व्यक्ति के ‘खोल्याँ‘ रखकर अर्थात् गोद में रख उसे पिता बना देते हैं। इसका उद्देश्य यह है कि ससुराल में वह उसे अपनी बेटी के समान ध्यान से रखे।

सोटा सोटी

  • शादी के बाद वर-वधू नीम की छड़ियों से गोल-गोल घूमकर ‘सोटा सोटी का खेल’ खेलते हैं।

विड़द खेहटियौ विनायक

  • विवाह के अवसर पर प्रतिष्ठित की जाने वाली विनायक की मिट्‌टी की मूर्ति।

छात

  • विवाह में नाई द्वारा किए जाने वाले दस्तूर विशेष पर दिया जाने वाला नेग।

बालाचूनड़ी

  •  मामा द्वारा वधू की माता के लिए लाई गई ओढ़नी।

कंवरजोड़

  • मामा द्वारा वधू (भाणजी) के लिए लाई गई ओढ़नी।

बयाणौ या बिहांणा

  • विवाह के समय प्रात:काल में गाए जाने वाले गीत।

खोल या छोल

  • विवाह के  बाद दुल्हन की झोली भरने की रस्म।

जात देना

  • विवाह के दूसरे दिन वर व वधू गाँव में अपने देवी-देवताओं के स्थान पर प्रसाद चढ़ाकर धोक देते हैं, इसे जात देना कहते हैं।

मृत्यु संबंधी रीति-रिवाज

बैकुण्ठी

  • मृत व्यक्ति के शरीर को बाँस अथवा लकड़ी की शैय्या पर श्मशान घाट ले जाया जाता है उसे ‘अर्थी’ या ‘बैकुण्ठी’ कहा जाता है।
  • बैकुण्ठी पर लेटाते समय सिरउत्तर दिशा में तथा पाँवदक्षिण दिशा में रखे जाते हैं।
  • बैकुण्ठी ले जाते समय उसे जो कँधा देते हैं वे काँधिया कहते हैं।

बखेर अथवा उछाल

  • वृद्ध (विशेषत:) व्यक्ति की मृत्यु होने पर श्मशान ले जाते समय राह में पैसे बिखेरना।

दंडोत

  • बैकुंठी के आगे मृत व्यक्ति अथवा महिला के बच्चे, पोते आदि दंडवत प्रणाम करते हुए चलते हैं।

पिंडदान

  • शव को श्मशान ले जाते समय प्रथम चौराहे पर पिंडदान किया जाता है। आटे से बना पिंड, गाय को खिलाया जाता है। अर्थी को चार व्यक्ति कँधा देते हैं जिसे कँधा देना कहते हैं।

आधेटा

  • घर और श्मशान तक की यात्रा के बीच में चौराहे पर बैकुण्ठी की दिशा परिवर्तन की जाती है। यह क्रिया आधेटा कहलाता है।

लांपा

  • अन्त्येष्टि की क्रिया हेतु अग्नि की आहूति सबसे बड़ा बेटा अथवा निकट के भाई द्वारा की जाती है जिसे लौपा या लांपा कहते हैं।

अंत्येष्टि

  • श्मशान में शव को लकड़ी से बनाई गई चिता पर रख दिया जाता है। मृतक का पुत्र तीन परिक्रमा करने के बाद चिता को मुखाग्नि देता है। कपाल फटने के बाद मृतक का पुत्र एक बाँस पर कटा नारियल बाँधकर उसमें घी भरकर मृतक की कपाल पर उड़ेल देता है। इस रस्म को ‘कपाल क्रिया’ कहते हैं।

सांतरवाड़ा

  • जब तक मृतक की अन्त्येष्टि क्रिया न हो जाए तब तक घर व पड़ोस में चूल्हे नहीं जलाए जाते हैं। अन्त्येष्टि में गए व्यक्ति स्नान आदि कर मृत व्यक्ति के घर जाते हैं, जहाँ घर का मुखिया उनके प्रति आभार प्रकट करता है। सांतरवाड़ा रस्म के तहत मृत्यु के पश्चात् 12 दिन तक किसी स्थान पर ‘तापड़’ बिछा कर बैठा जाता है।

भदर

  • किसी की मृत्यु हो जाने की स्थिति में शोक स्वरूप अपने बाल, दाढ़ी, मूँछ इत्यादि कटवा लेना ‘भदर’ कहलाता है।

फूल एकत्र करना

  • मृत्यु के तीसरे दिन मृतक के परिजन श्मशान घाट जाकर चिता की राख में से मृतक की अस्थियाँ चुन कर एक मिट्टी के कलश में इकट्ठा करते हैं, जिन्हें लाल वस्त्र में रखते हैं। इसे ‘फूल चुगना’ कहते हैं। इसके बाद परिवार के कुछ सदस्य कलश में एकत्रित अस्थियों को गंगा, पुष्कर या अन्य किसी जलाशय में बहा देते हैं।

तीये की बैठक

  • मृत्यु के तीसरे दिन शाम को तीये की बैठक होती है, जो लोग शव यात्रा में नहीं जा पाते हैं, वो तीये की बैठक में भाग लेकर संवेदना व्यक्त करते हैं। बैठक में पुरोहित मृत आत्मा की शांति के लिए शांति पाठ करता है। बैठक में सम्मिलित होने वाले समस्तजन, स्वर्गीय शांति व्यक्ति के चित्र पर पुष्प अर्पित करते हैं और मृतक की आत्मा की के लिए दो मिनट का मौन रखकर प्रार्थना करते हैं।

मौसर

  • राजस्थान में मृत्यु भोज की प्रथा है। इसे ‘मौसर’, ‘औसर’ या ‘नुक्ता’ कहते हैं। मृतक के निकटतम संबंधी अपने संबंधियों व ब्राह्मणों को भोजन करवाते हैं। यह क्रम 12 दिन तक जारी रहता है।
  • जीते जी मृत्यु भोज करवाना ‘जोसर’ कहलाता है।
  • आदिवासियों का मृत्यु भोज कांगिया कहलाता है।

मूकांण

  • मृतक के पीछे उसके संबंधियों के पास संवेदना प्रकट करने जाना।

डांगड़ी रात

  • तीर्थादि से लौटकर करवाया जाने वाला रात्रि जागरण।

दोवणियां

  • मृतक के 12वें दिन घर की शुद्धि हेतु जल से भरे जाने वाले मटके।

पगड़ी

  • मौसर के दिन ही मृत व्यक्ति के बड़े पुत्र को उसके उत्तराधिकारी के रूप में पगड़ी बाँधी जाती है।

रंग बदलना

  • किसी के पिता की मृत्यु होने पर उसके परिवार के सभी पुरुष सदस्य सफेद साफे बाँधते हैं और 12वें दिन उत्तराधिकारी के ससुराल से गुलाबी रंग के साफे लाए जाते हैं जो पूरे कुटुम्ब में वितरित किए जाते हैं। सफेद साफे उतार कर उसके स्थान पर गुलाबी साफे बाँधने की यह परम्परा ‘रंग बदलना’ कहलाती है।

महीने का घड़ा

  • व्यक्ति की मृत्यु के एक माह पश्चात् उसके परिवार द्वारा किया जाने वाला यज्ञ व दान।

छमाही

  • व्यक्ति की मृत्यु के छह माह पश्चात् उसके परिवार द्वारा किया जाने वाला यज्ञ व दान।

बारह माह का घड़ा

  • व्यक्ति की मृत्यु के एक वर्ष पश्चात् उसके परिवार द्वारा किया जाने वाला यज्ञ व दान।

श्राद्ध

  • भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक सोलह दिनों का श्राद्ध पक्ष होता है। श्रा­द्ध, उसी तिथि को किया जाता है जिस तिथि को  व्यक्ति की मृत्यु हुई थी।

ओख

  • इस प्रथा के अन्तर्गत जब किसी परिवार में त्योहार के अवसर पर कोई मृत्यु हो जाती है तो पीढ़ी दर पीढ़ी उस त्योहार को नहीं मनाया जाता है।

आदि श्राद्ध

  • मृत्यु के पश्चात् मृतक के पीछे ग्यारहवें दिन किया जाने वाला श्राद्ध, आदि श्राद्ध कहलाता है।
  • श्राद्धउसी तिथि को किया जाता हैजिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई थी।

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अंतिम शब्द 

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