Rajasthan Reet Hindi Pedagogy Top 10 Question Mock Test

Rajasthan Reet Mock Test 2022 in Hindi अगर आप राजस्थान रीट या 1st/2nd ग्रेड शिक्षक, LDC  की तैयारी कर रहे है तो आज हम आपके लिए Rajasthan Reet Hindi Pedagogy Top 10 Question Mock Test हिंदी शिक्षा शास्त्र से संबंधित टॉप 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न लेकर आये है जो आपको आगामी पेपर में काम जरूर आएंगे यह रीट 2022 के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न है आपको इन 10 के साथ ही सभी प्रश्न का व्याख्या सहित हल भी इसमें पढ़ने कोमिलेगा 

Rajasthan Reet Hindi Pedagogy Top 10 Question Mock Test हम आपके लिए ऐसे ही महत्वपूर्ण नोट्स लेकर आएंगे जिससे आप प्रैक्टिस कर सकते है इसमें आपको राजस्थान जीके की तैयारी के लिए शिक्षा शास्त्र महत्वपूर्ण प्रश्न उपलब्ध करवाए गए है जो आपको राजस्थान के सभी पेपर में काम आएंगे 

Rajasthan Reet Hindi Pedagogy Top 10 Question Mock Test | हिंदी शिक्षा शास्त्र

Q. मौन पठन का प्रकार है।

  • वैयक्तिक पठन
  • सामूहिक पठन
  • पुस्तक पठन
  • द्रुत पठन

Solution :

मौन पठन- जब लिखित सामग्री को बिना आवाज निकाले मन ही मन पढ़ते है तो इस प्रकार के पठन को मौन पठन कहते हैं। मौन पठन दो प्रकार का होता है गहन वाचन तथा द्रुत वाचन

  1.  गहन अथवा गंभीर वाचन- इसमें विषय वस्तु का सुक्ष्म तथा गहन अध्ययन किया जाता है।
  2.  व्यापक अथवा द्रुत वाचन- व्यापक अध्ययन के द्वारा हम छात्र-छात्राओं को इस योग्य बनाते है कि वे स्वतंत्र रूप से पढ़ सके, पुस्तकालय का ठीक-ठीक उपयोग कर सकें तथा अध्यापक की कम से कम सहायता लेते हुए मौन वाचन के द्वारा भाव को समझ सकें।

Q. ___________ द्वारा अधिगम संबंधी _____ एवं ______ का पता लगाया जाता है।

  • निदानात्मक परीक्षण, कठिनाइयों, कमजोरियों
  • उपचारात्मक शिक्षण, कठिनाइयों, कमजोरियों
  • उपलब्धि परीक्षण, कठिनाइयों, कमजोरियों
  • मूल्यांकन, कठिनाइयों, कमजोरियों

Solution :

निदानात्मक परीक्षण का अर्थ है बालक की अधिगम संबंधी कठिनाईयों तथा सीमाओं को पहचानना। कठिनाईयों को पहचानने के बाद इन कठिनाईयों को दूर करने के लिए उपचारात्मक शिक्षण किया जाता है।

Important Points

  • निदानात्मक परीक्षण का कार्य है अनुत्तीर्ण बालक की कठिनाईयों को पहचानना और उन्हे दूर करने का हर संभव प्रयास करना।
  • निदानात्मक परीक्षण का कार्य अनुत्तीर्ण बालक की संख्या में कमी लाना है।
  • निदानात्मक परीक्षण का उद्देश्य ऐसे तत्वों व गलतियों को खोजना है, जो विद्यार्थी की विषय विशेष की प्रगति में रूकावट डालती है।
  • यह शिक्षण प्रक्रिया का अभिन्न अंग है।

Q. बालको द्वारा किसी भी विषय पर तर्क के साथ तत्काल बोलने की योग्यता है-

  • आशुभाषण
  • भाषण
  • चर्चा
  • वार्तालाप

Solution :

‘आशुभाषण’ का अर्थ, भाषण बोलने की शक्ति और आशु का अर्थ तेज़ (जल्दी) है अर्थात् किसी विषय पर तत्काल बोलना आशुभाषण कहलाता है। मौखिक संचार, भाषण ध्वनियों और संकेतों के द्वारा किसी के विचारों और भावनाओं को अभिव्यक्त करने की क्षमता को आशुभाषण कहते है।

Key Points

“त्वरित बुद्धि लगा विषय पर, फटाफट से तू सोच।

 रखके मस्तिष्क में भाषण का सार, तत्काल से तू बोल॥”

  • किसी विषय पर बिना किसी तैयारी किए स्वाभाविक रूप से बोलना और तर्कों के माध्यम से अपनी बात को सिद्ध करना, अर्थात् आशुभाषण- वाक्चातुर्य या तर्क का युद्ध।
  • विषय कुछ भी हो, अच्छी शुरुआत, कलात्मक भाषा एवं नपे-तुले तर्क आपको इस प्रतियोगिता का विजेता बनाते हैं ।

Q. पाठ्यपुस्तक के अंतः पक्ष का हिस्सा नहीं है-

  • भाषा संबंधी अभ्यास
  • कक्षा के बाहर का जीवन-जगत कक्षा के भीतर लाना
  • राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति
  • अधिक समय तक चलने वाला कागज

Solution :

पाठ्यपुस्तक के दो पक्ष होते हैं- अंतः पक्ष तथा बाह्य पक्ष

अंतः पक्ष- पाठ्य-पुस्तक का अध्ययन पक्ष अथवा अंतः पक्ष पाठय-पुस्तक में दी जाने वाली विषय-सामग्री की ओर संकेत करता है। इसके अंतर्गत विषय-सामग्री सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

बाह्य पक्ष- पाठ्य पुस्तक के बाहय अथवा रूपात्मक पक्ष में पाठ्य पुस्तक का स्वरूप, अच्छी जिल्द, आवरण पृष्ठ, मुद्रण, अध्ययन-पक्ष का मूल संदर्भ पाठ्यसामग्री से है।

अंतः पक्ष का चयन करते समय ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बिंदु-

  • अंतः पक्ष के चयन व संगठन का विशेष महत्त्व है ताकि बच्चे न केवल विभिन्‍न विषयों का ज्ञान प्राप्त कर सकें बल्कि भाषाई सूक्ष्मताओं और भाषा सौंदर्य की सराहना करना सीख सकें।
  • पाठ्य पुस्तक के अंत: पक्ष के अंतर्गत भाषा संबंधी अभ्यास भी आते हैं।  
  • पाठों के चयन के साथ उसकी प्रस्तुति, चित्र आदि भी पाठ्य पुस्तक के अंतः पक्ष का हिस्सा हैं। 
  • इसमें साहित्य एवं संस्कृति का आवश्यक प्राथमिकता वाली गतिविधियों का चयन होता है।

Q. दृश्य-श्रव्य सामग्री के बारे में सही कथन नहीं है-

  • भाषा-शिक्षक का स्थान ले लेती है।
  • भाषा-शिक्षक के कार्य को प्रभावशाली बनाती है।
  • भाषा-शिक्षक के कार्य को फलप्रद बनाती है।
  • सम्प्रत्य को प्रमाणिक रूप देने में सहायक।

Solution :

श्रव्य-दृश्य सामग्री वह होते हैं, जो श्रव्य (कान) के साथ-साथ दृश्य (आँखे) ज्ञानेन्द्रियों का उपयोग कर शिक्षण अधिगम को सरल व सफल बनाया जाता है।

उदाहरण – चलचित्र, दूरदर्शन, ड्रामा, कठपुतली, टेलिविजन, इंटरनेट, कम्प्युटर आदि।

Important Points

  • इस बात में कोई संदेह नहीं है कि दृश्य-श्रव्य तकनीक विदेशी भाषा- शिक्षण को अधिक सफल, रोचक और गतिशील बनाती है और
  • इस बात में भी कि इन उपकरणों के प्रयोग से भाषा-शिक्षक का अस्तित्व भी खतरे में नही पड़ता।
  • अतः यह सोचना-मानना भ्रामक है कि तकनीकी उपकरण भाषा-शिक्षक का स्थान ले सकते हैं
  • यह अवश्य है कि ये उपकरण भाषा-शिक्षक के कार्य को प्रभावशाली और फलप्रद बना सकते हैं,

Q. बातचीत एवं संवाद किस भाषा शिक्षण विधि का आधार है?

  • श्रवण-भाषण विधि
  • प्रत्यक्ष विधि
  • संप्रेक्षण विधि
  • अनुवाद विधि

Solution :

प्रत्यक्ष विधि को सुगम पद्धति, सम्रात विधि, प्रकृतिक विधि तथा निर्बाध विधि के नामों से भी जाना जाता है। इस विधि में बालक को बिना व्याकरण के नियमों का ज्ञान कराये भाषा सीखायी जाती है अर्थात् भाषा के माध्यम से ही भाषा सीखायी जाती है।

Important Points

  • इस विधि में बालक की मातृभाषा को बिना मध्यस्थ बनाये अन्य भाषाएं  सिखायी जाती हैं।
  • इस विधि में भाषा-प्रयोग की प्रधानता होती है।
  • इस विधि के सफल प्रयोग के लिए भाषा समृद्ध के साथ अवसरों की उपलब्धता अतिआवश्यक है।
  • इस विधि में मौखिक व लिखित अभ्यास द्वारा सीधे नयी भाषा सिखायी जाती है।
  • इस विधि में वार्तालाप के माध्यम से सीखने पर अधिक बल दिया जाता है।
  • यह विधि व्याकरण विधि के दोषों को दूर करने में प्रयोग में लायी जाती है।
  • इस विधि में व्याकरण का ज्ञान अप्रत्यक्ष रूप से दिया जाता है।
  • इस विधि में दृश्य-श्रव्य सामग्री का अधिक प्रयोग किया जाता है।

Q. “भाषा संसार का नावमय चित्र है, ध्वनिमय स्वरूप है, यह विश्व की हनय तंत्री की झंकार है।” भाषा के संबंध में यह कथन कहा है-

  • भारतेंदु हरिश्चंद्र
  • श्याम सुंदर दास
  • सुमित्रानंदन पंत
  • भोलेनाथ तिवारी

Solution :

“भाषा संसार का नावमय चित्र है, ध्वनिमय स्वरूप है, यह विश्व की हनय तंत्री की झंकार है।” भाषा के संबंध में यह कथन प्रकृति के सुकुमार सुमित्रानंदन पंत ने कहा है। सुमित्रानंदन पंत ऐसे साहित्यकारों में गिने जाते हैं, जिनका प्रकृति चित्रण समकालीन कवियों में सबसे बेहतरीन था। 

Additional Information

भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने लिखा है

  • निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय के सूल.
  • मतलब मातृभाषा की उन्नति बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी मुश्किल है.

श्याम सुंदर दास

  • ​भाषा के संबंध में उनका विचार था- ‘जब हम विदेशी भावों के साथ विदेशी शब्दों को ग्रहण करें तब उन्हें ऐसा बना लें कि उनमें से विदेशीपन निकल जाए और वे अपने होकर हमारे व्याकरण के नियमों से अनुशासित हों।’
  • राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने श्याम सुंदर दास के बारे में कहा है-​
    • मातृभाषा के हुए जो विगत वर्ष पचास।
    • नाम उनका एक ही है श्याम सुंदरदास।।

Q. नाटक शिक्षण खेल-खेल में भाषा कौशल को सीखने का माध्यम है। नाटक शिक्षण –

  • इससे बालक अमूर्त भावों को भी मूर्त बनाकर प्रकट करना सीखते हैं।
  • यह ‘स्वाँग रचना खेल’ है जो सीखने की प्रक्रिया में तेज़ी लाता है।
  • यह परिस्थिति अनुसार भाषा-प्रयोग सीखाने का व्यवहारात्मक साधन है।
  • उपरोक्त सभी

Solution :

नाटक- जो रचना श्रवण के द्वारा ही नही अपितु दृष्टि के द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूती कराती है, उसे नाटक कहते हैं। नाटक में संवाद अदायगी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। 

  • कक्षाभिनय प्रणाली- इस विधि में कक्षा में ही छात्रों को विवध पात्रों के रूप में मानकर उचित भाव भंगिमा के साथ अभिनय करने के लिए कहा जाता है। इस विधि में छात्र सक्रिय होकर भाग लेते हैं। इस विधि को नाटक शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि माना जाता है।
  • यह ‘स्वाँग रचना खेल’ है जो सीखने की प्रक्रिया में तेज़ी लाता है।

कक्षाभिनय प्रणाली के गुण-  

  • यह मित्वययी होने के साथ संचालन में सरल है।
  • इसके द्वारा अमूर्त भावों को भी मूर्त बनाकर प्रकट किया जा सकता है।
  • पात्रानुसार बच्चों द्वारा अभिनय से सीखने की प्रक्रिया में तेज़ी आती है।
  • बालक को उचित गति, यति, हाव-भाव के साथ मौखिक अभिव्यक्ति का ज्ञान होता है।
  • छात्रों की कल्पना, तर्क शक्ति तथा अभिव्यक्ति क्षमता का विकास होता है।
  • संवाद सुनकर अन्य बच्चों में श्रवण कौशल का विकास होता है।

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