राजस्थान शिक्षक भर्ती 2023 के लिए तैयारी कर रहे हैं विद्यार्थियों के लिए आज हम राजस्थान सामान्य ज्ञान से संबंधित एक महत्वपूर्ण टॉपिक राजस्थान के धार्मिक स्थल ( 2 ) | Rajasthan Gk Notes in Hindi | For RAS, REET के बारे में उपलब्ध करवा रहे हैं क्योंकि यहां से भी अनेक बार पेपर में प्रश्न पूछे जा चुके हैं यह नोट्स ऑफलाइन क्लास के माध्यम से तैयार किए गए हैं इसलिए इस टॉपिक को अच्छे से क्लियर करने के लिए यह नोट्स अवश्य पढ़ें
राजस्थान के धार्मिक स्थल ( 2 ) के बारे में यह पार्ट 2 है अगर आप पार्ट 1 पढ़ना चाहते हैं तो हमने आपके लिए इसी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है आप सर्च बॉक्स में जाकर सर्च कर सकते हैं Rajasthan Gk Notes in Hindi के लिए ऐसे नोट्स आपको कहीं नहीं देखने को मिलेंगे यह नोट्स आपको कम समय में अधिक तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होंगे
राजस्थान के धार्मिक स्थल ( 2 ) | Rajasthan Gk Notes in Hindi | For RAS, REET
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छींछ, बाँसवाड़ा
● बागीदौरा मार्ग पर छींछ गांव में तालाब के किनारे 12वीं शताब्दी का प्राचीन ब्रह्मा मंदिर है। यहाँ कृष्ण पाषाण पर हंस की आकृतिनुमा चतुर्भुज ब्रह्माजी की आदमक़द प्रतिमा, शिल्प की दृष्टि से अद्भुत और विलक्षण है। ब्रह्माजी के बांयी तरफ भगवान विष्णु की दुर्लभ प्रतिमा श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है।
तलवाड़ा मंदिर, बाँसवाड़ा
● शिल्प नगर तलवाड़ा में त्रिपुरा सुन्दरी मार्ग पर स्थित सिद्धि विनायक मंदिर आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इसे ’आमलीया गणेश’ के नाम से जाना जाता है। बुधवार एवं सकंट चतुर्थी को श्रद्धालु आते हैं। यहाँ सूर्य मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, राम मंदिर प्रमुख है।
विठ्ठल देव मंदिर, बाँसवाड़ा
● बांसवाड़ा से कुछ किलोमीटर दूर विठ्ठल देव मंदिर स्थित हैं। एक सुंदर लाल रंग की संरचना वाला यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है।
मदारेश्वर, बाँसवाड़ा
● बाँसवाड़ा शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित मदारेश्वर महादेव का मंदिर शिव भक्तों की आस्था का केन्द्र है। पर्वतमाला के भीतर गुफा में अवस्थित अनोखे प्राकृतिक स्वरूप के कारण शिवलिंग श्रद्धालुओं की मनोकामना का स्थल है। यहाँ पहाड़ी के ऊपर से शहर एवं प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारा जा सकता है।
मानगढ़ धाम, बाँसवाड़ा
● राजस्थान के जलियांवाला बाग के नाम से प्रसिद्ध मानगढ़ धाम बाँसवाड़ा से 85 किमी की दूरी पर आनंदपुरी के समीप राजस्थान – गुजरात सीमा की पहाड़ी पर स्थित है। यह स्थान आदिवासी अंचल में स्वाधीनता आन्दोलन के अग्रज माने जाने वाले महान संत गोविन्द गुरू की कर्मस्थली माना जाता है।
बागोर साहिब, भीलवाड़ा
● बागोर साहिब एक ऐतिहासिक गुरूद्वारा है जहां श्री गुरू गोविन्द सिंह जी पंजाब की यात्रा पर जाते समय ठहरे थे । यह गुरूद्वारा तहसील मंडल के गांव बागोर में मंडल शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित है।
बांदीकुई, दौसा
● दौसा से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर बांदीकुई में प्रोटेस्टेंट ईसाइयों के लिए रोमन शैली में बना चर्च प्रमुख आकर्षण है।
बेणेश्वर मंदिर, डूँगरपुर
● सोम व माही नदियों में डुबकी लगाने के बाद, बेणेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना करने के लिए भक्तगण समर्पण के भाव से आते हैं। इस अंचल के सर्वाधिक पूजनीय शिवलिंग बेणेश्वर मंदिर में स्थित है। सोम और माही नदियों के तट पर स्थित पांच फीट ऊँचा ये स्वयंभू शिवलिंग शीर्ष से पांच हिस्सों में बंटा हुआ है।
बोरेश्वर, डूँगरपुर
● 1179 ईस्वी में महाराज सामंत सिंह के शासनकाल में ’बोरेश्वर महादेव’ मंदिर का निर्माण हुआ था। यह सोम नदी के तट पर स्थित है।
भुवनेश्वर, डूँगरपुर
● डूंगरपुर से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भुवनेश्वर पर्वत के ऊपर स्थित है और एक शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर स्वयंभू शिवलिंग के समीप ही बनाया गया है।
देव सोमनाथ, डूँगरपुर
● देव गाँव में स्थित यह मंदिर, अपनी बनावट के लिए प्रसिद्ध है। तीन मंज़िलों में बना यह मंदिर, 150 स्तम्भों पर खड़ा है। देव सोमनाथ के नाम पर 12वीं सदी में बना सोम नदी के किनारे पर एक पुराना और सुंदर शिव मंदिर है।
गलियाकोट, डूँगरपुर
● दसवीं शताब्दी में बाब जी मौला सैयदी फख़रूद्दीन साहब का निवास था। दाऊदी बोहरा समाज का पवित्र स्थान है ’गलियाकोट दरगाह’जो डूंगरपुर से 58 किलोमीटर की दूरी पर माही नदी के किनारे स्थित है।
सुरपुर मंदिर, डूँगरपुर
● डूंगरपुर से लगभग 3 किलोमीटर दूर ’सुरपुर’ नामक प्राचीन मंदिर गंगदी नदी के किनारे पर स्थित है। मंदिर के आस पास के क्षेत्र में भूलभुलैया, माधवराय मंदिर, हाथियों की आगद और महत्वपूर्ण शिलालेख जैसे अन्य आकर्षण भी हैं।
त्रिपुरा सुंदरी, डूँगरपुर
● बांसवाड़ा – डूंगरपुर मार्ग पर 19 किमी दूरी पर तलवाड़ा ग्राम के समीप उमराई गांव में स्थित माँ त्रिपुरा सुन्दरी का प्राचीन मन्दिर है। मंदिर के उत्तरी भाग में सम्राट कनिष्क के समय का एक शिवलिंग होने से कहा जाता है कि यह स्थान कनिष्क के पूर्वकाल से ही प्रतिष्ठित है।
विजय राज राजेश्वर मंदिर, डूँगरपुर
● भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती को समर्पित ’विजय राजराजेश्वर मंदिर’ गैप सागर झील के तट पर स्थित है। यह अपने समय की उत्कृष्ट वास्तुशिल्प को प्रदर्शित करता है। मंदिर का निर्माण महाराज विजय सिंह द्वारा प्रारम्भ किया गया था एवं जिसे महारावल लक्ष्मणसिंह द्वारा 1923 ई. में पूरा किया गया।
भर्तृहरि मंदिर, अलवर
● अलवर के लोक देवता भर्तृहरि जी एक राजा थे। उनके जीवन के अन्तिम वर्ष यहीं बीते थे। महाराजा जयसिंह ने 1924 में भर्तृहरि जी के मंदिर को नया स्वरूप दिया।
नारायणी माता, अलवर
● अलवर से दक्षिण पश्चिम की ओर, 80 किमी. की दूरी पर नारायणी माता को समर्पित यह मंदिर, स्थानीय लोगों में बड़ी मान्यता रखता है। वैशाख माह में यहाँ प्रतिवर्ष एक मेले का आयोजन किया जाता है
पांडुपोल, अलवर
● यह भगवान हनुमान को समर्पित मंदिर है, जहाँ हनुमान जी की मूर्ति लेटी हुई अवस्था में है। सरिस्का अभ्यारण्य के गेट के माध्यम से इस मंदिर की ओर, एक पगडण्डी का रास्ता है।
तिजारा जैन मंदिर, अलवर
● अलवर दिल्ली मार्ग से लगभग 60 किमी. की दूरी पर यह जैन तीर्थ स्थल बना हुआ है। आठवें तीर्थंकर श्री चन्द्र प्रभु भगवान की स्मृति में यह प्राचीन मन्दिर बनवाया गया था। राजा महासेन और रानी सुलक्षणा के पुत्र ने अपने इस राज्य पर शासन करने के बाद, यहीं पर दीक्षा प्राप्त की थी।
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