आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए Indian Geography Notes Pdf in Hindi भारत का भूगोल से संबंधित एक महत्वपूर्ण टॉपिक अपवाह तंत्र एवं नदियों से संबंधित नोट्स लेकर आए हैं जो आपको सिविल सर्विस परीक्षा एवं सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत ज्यादा काम आने वाले हैं अगर आप सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं तो भूगोल के इस टॉपिक को उपलब्ध करवाए जा रहे नोट्स को पढ़कर अच्छे से क्लियर कर सकते हैं
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Indian Geography Notes Pdf in Hindi | भारत का भूगोल – अपवाह तंत्र से संबंधित नोट्स
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- नदी जिस क्षेत्र से जल ग्रहण करती है उसे उस नदी का जल ग्रहण क्षेत्र या Catchment Area कहते हैं।
- जल ग्रहण क्षेत्र के आधार पर नदी द्रोणियों को तीन भागों में बाँटा गया है –
1. बड़ी नदी द्रोणियाँ (Large Basins) :-
- जल ग्रहण क्षेत्र 20,000 km2 से अधिक
- 14 नदी द्रोणियाँ à बड़ी नदी द्रोणियों में आती हैं।
- गंगा, गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा
2. मध्यम नदी द्रोणियाँ (Medium River Basins):-
- 2000-20,000 km2
- 44 नदी द्रोणियाँ हैं।
3. लघु नदी द्रोणियाँ (Small River Basins) :-
- जलग्रहण क्षेत्र – 2000 km2 से कम हैं।
- लगभग 55 नदी द्रोणियाँ हैं।
- जलसंभर :- बहुत छोटी नदी द्रोणियाँ हैं।
- जल विभाजक क्षेत्र
- दिल्ली – अम्बाला सहारनपुर
- अरावली
- विंध्याचल
- सतपुड़ा
पश्चिमी घाट
अपवाह प्रतिरूप (Drainage Pattern) :- अपवाह तंत्र एक विशेष ज्यामिति आकार के प्रकार है।
- वृक्षाकार अपवाह प्रतिरूप (Dendritic Drainage Pattern)
- पत्ताकार अपवाह प्रतिरूप (Pinnate Drainage Pattern)
- जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप (Trelis Drainage Pattern)
- आयताकार अपवाह तंत्र (Rectangalan Drainage Pattern)
- आरीय अपवाह तंत्र (Radial Drainage Pattern)
हिमालय की नदियाँ –
- हिमालय की नदियाँ तीन मुख्य तंत्रों में विभाजित हैं। सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र।
- ये नदियाँ तिब्बत के पठार की दक्षिणी ढालों से निकलकर हिमालय के मुख्य अक्ष के समानान्तर अनुदैर्ध्य द्रोणियों में बहती हैं।
- वे अचानक दक्षिण की ओर मुड़ती हैं तथा अन्नत पर्वतों के शृंगों को भेदकर उत्तरी मैदान में पहुँचती हैं।
- सिंधु, सतलज, अलकनंदा, गंडक, बह्मपुत्र एवं कोसी के गहरे गॉज के दिखने से स्पष्ट है कि ये नदियाँ पर्वतों की अपेक्षा पुरानी हैं।
- ये नदियाँ हिमालय के बनने की सभी अवस्थाओं में बहती रही हैं जिससे उनके किनारे ऊपर उठते गए, जबकि उनका तल गहरा होता गया तथा गार्ज की परिच्छेदिका में परिवर्तित हो गया।
- प्रायद्वीपीय नदियाँ घाटियों में से होकर बहती हैं, जो लगभग पूरी तरह संतुलित हो चुकी हैं।
- इन नदियों की समतली अनुदैर्ध्य परिच्छेदिका से यह संकेत मिलता है कि अब इनके द्वारा अपरदन की क्रिया किए जाने की गुंजाइश बहुत कम है।
- इनमें से बहुत सी नदियाँ मौसमी हैं, क्योंकि उनका प्रवाह केवल वर्षा पर निर्भर रहता है।
- पठार का दृढ़-शैलाधार तथा धरातल का सामान्यतः जलोढ़हीन चरित्र इन नदियों में विसर्पण नहीं होने देता।
- यही कारण है कि प्रायद्वीपीय नदियों का मार्ग-सीधा तथा सामान्यतः रेखिक है।
उत्तर भारत की प्रमुख नदियाँ –
शिवालिक पहाड़ियों के निर्माण के फलस्वरूप भारत का अपवाह तन्त्र तीन भागों में विभक्त हो गया-
(1) सिन्धु नदी तंत्र
(2) गंगा नदी तंत्र एवं
(3) ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र।
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Page | 29 |
Size | 860 KB |
Language | Hindi |
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अंतिम शब्द
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